चिंता और चुनौती

जब देश में स्वच्छता अभियान चल रहा था,

तब मेरे देश का अभिमान जल रहा था।। ‌                                                  अभियान का चलना बताता है कमी है। ‌

हर एक का समझना कितना लाज़मी है।। ‌

 

चिंता इस बात की है कि,सब पढ़े लिखे।

फिर भी क्यों लगता है पढ़े लिखों की कमी है।।

 

कमी नहीं है साधनों की कूड़ेदान खड़े हैं ।

फिर भी कचरों के ढेर बाहर पड़े हैं।।

शौचालयों में पानी की कोई कमी नहीं है ।

फिर भी क्यों नहीं बहाते जो लाज़मी है।

 

नदियों और तालाबों का पानी पीने में लाते हैं ।

फिर उसी पानी में, पूजा के फूल सिराते हैं ।।

जगह-जगह 'थूकना मना है' के बैनर लगे हैं ।

फिर भी बैनरों तले थूक के छीटे पड़े हैं ।।

बीमार हो जाएंगे क्या पता नहीं है?

कोई बताए कब तक ये अभियान चलेंगे ।

और पढ़े लिखे अनपढ़ ही रहेंगे। ।

क्या देश का अभिमान यूं ही जलता रहेगा ।

और अभियान सदा ही चलता रहेगा।


तारीख: 26.03.2025                                    निधी खत्री




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है