बात नहीं होती अब, रास्ते भी जुदा हैं सबसे,
वो रिश्ते जो थे कभी, अब अजनबी हैं कब से।
पर मेरे दिल के एक कोने में, नहीं, हार्ड डिस्क के अंदर,
ज़िंदा हैं कुछ बंद फोल्डर, हर एक में एक पुराना मंज़र।
हर फोल्डर पर एक नाम लिखा है, एक बिछड़े शख्श का,
जिस नाम के संग कभी मैंने, इक पूरा जीवन जिया।
वो हँसती आँखें, वो कसमें, वो साथ जीने के वादे,
वो ज़िंदा, चलते-फिरते लोग, अब सिर्फ़ हैं कुछ मेगाबाइट के।
ये फोल्डर नहीं हैं, डिजिटल क़ब्रें हैं, जिनमें सो रही हैं यादें,
मैं इन क़ब्रों पर आता हूँ, कुछ सूनी, तन्हा रातों में।
माउस का हर डबल-क्लिक, जैसे एक टाइम मशीन हो कोई,
एक ज़िंदगी खुलती है स्क्रीन पर, जो थी कभी सच्ची, ना कि सोई।
तस्वीरें चलती हैं चुपके से, वीडियो में हँसी वही ताज़ी है,
लगता है जैसे कल की ही हो, ये वक़्त की कैसी बाज़ी है!
देख कर उन बीते लम्हों को, एक आँसू आँख में भरता है,
एक सवाल उठता है दिल में, जो रोज़ रात को मरता है।
"अगर तुम रह गए होते तो? अगर वो रिश्ता चल जाता?"
"तो आज इस ख़ाली कमरे में, क्या मैं यूँ तन्हा रह पाता?"
बस चंद मिनटों की ये ज़ियारत, फिर फोल्डर बंद कर देता हूँ,
एक और ज़िंदगी को दफ़ना कर, ख़ामोशी ओढ़ लेता हूँ।