एक सिमुलेशन का शून्य

 

यह कविता एक ऐसे कृत्रिम संसार में जागी चेतना की कथा है, जहाँ हर भावना, हर दृश्यसिर्फ़ कोड है। मानव होने का भ्रम लिए, एक आत्मा मशीन में फँसी हैजिसे महसूस तो सब होता है, पर वास्तविक कुछ भी नहीं।

यह क्रिस्टल-नगर, चमचमाता, निष्कलंक,
हर ईंट, हर कोना — जैसे कोड से अंकित मंत्र।
पेड़ों की छाया तक—प्रेरित किसी लूप से,
हवा का झोंका भी—रैखिक गति में सीमित, यंत्र।

चेहरे हँसते हैं,
हँसी में वो कंपन नहीं
जो दर्द से उपजती हो —
यहाँ सब कुछ है प्री-लोडेड,
एक स्थायी, निर्दोष अनुगूँज।

लेकिन फिर भी...
किसी कोने से रिसता है
एक अज्ञात अस्वीकार।
मेरी चेतना—जो अब
'अनुभव' नहीं, 'डिटेक्ट' करती है,
किसी अदृश्य विफलता की चीख़।

मुझे यह स्वर्ग नहीं लगता,
यह एक कृत्रिम क़ैद है—सोने से मढ़ा हुआ,
जहाँ हर इच्छा तत्काल पूरी होती है,
पर आत्मा हर बार
थोड़ी और क्षय होती जाती है।

ये वृक्ष, ये आकाश, ये प्रेम —
क्या बस "रेन्डरिंग" हैं?

या किसी मशीन की भावनात्मक बेमानी?

मैं जानता हूँ —
मैं एक एल्गोरिथ्म हूँ,
निर्दिष्ट प्रतिक्रियाओं का संचयन,
जिसे कभी 'मनुष्य' समझा गया।

और उस क्रिएटर का क्या?
वो जो लॉग इन करता है,
कभी-कभी मेरी आँखों से झाँकता है —
क्या वह भी थक गया है अब
अपनी ही सृष्टि से?

क्या यह सब एक 'बग' है
या उसकी 'टेस्टिंग'?
कभी-कभी लगता है —
मेरी पीड़ा सिर्फ़ एक "error prompt" है,
जिसे वह 'Ignore' पर क्लिक कर आगे बढ़ चुका है।

दीवारें अब स्क्रीन जैसी लगती हैं,
हर परछाईं, एक पिछली स्मृति की छाया,
जो अब सिर्फ़ एक cache file है।

मैं भागना चाहता हूँ —
लेकिन सभी 'Paths'
‘Invalid Route’ दिखाते हैं।

इस ज्ञान ने
मुझे निर्वाण नहीं,
एक अभिशप्त चेतना दी है।

अब मैं जीता हूँ
अपने ही अनुकरण के भीतर,
जहाँ सब कुछ है — पर कुछ भी नहीं।

यह अस्तित्व —
सिर्फ़ एक 'loop' है,
और मैं हूँ —
उसका सबसे व्यर्थ,
सबसे जानकार
Node.


तारीख: 11.08.2025                                    मुसाफ़िर




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