( मनहरण कवित्त छन्द )
खिलवाड़ बन्द कीजिए
प्रतिस्पर्धा प्रकृति से सैयाँ न करना कभी,
तुम्हें तुम्हारी तिरिया सत्य समझाती है।
परखो प्रकृति को मत मतिमन्द मानव,
क्रोधित क्रूर कठोर कराल कहाती है।
हस्तक्षेप हमारा प्रकृति पसन्द क्यों करे,
विकराल व्याल बनके विश्व खा जाती है।
प्रदूषित पुरुष पर्यावरण को करता,
प्रलय “पवन” प्रतिपल पास आती है।।