ख़बर नहीं

ख़बर नहीं...
जाने कहाँ अब वो सितम, वो तन्हाई है..
जाने कहाँ छुप गयी वो रुस्वाई है..
जाने कहाँ खो गया है वो गम का मंज़र..
ए-ज़िन्दगी, तू जाने कहाँ आंसुओ को भूल आयी है..

 खबर नही....
जाने कैसे लबों पर हँसी आई है..
मुस्कुराकर अब तो हर शाम बिताई है..
खुद में खो लेती है, खुद की हो लेती है..
शायद.. उनकी मोहब्बत ही मेरी दवाई है...

 खबर नहीं...
जाने क्यों हर महफ़िल में गुनगुनाइ है..
जाने क्यों मेहबूब की ताऱीफ़ो की शोर मचाई है..
हाँ! है वो ज़िन्दगी, है ज़िन्दगी उसकी..
मैंने तो बस उसके दिल में एक जगह पायी है....

 खबर नहीं,
ए-ज़िन्दगी, तू जाने कहाँ आँसुओ को भूल आई है...


तारीख: 05.06.2017                                    निशांत









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