सवेरा हुआ एक कली खिली,
खिलखिलाते हुए स्कूल को चली।
आज कली खिलके फूल हो गई,
मां की लाडो आज सोलह की हो गई।।
इंतजार उसके आने का हो रहा,
बर्थडे उसके मनाने का हो रहा।
सारी दोपहर इंतजार में कट गई,
आई लाडो तो मां से लिपट गई ।।
खून से लतपथ उसकी ड्रेस हो गई,
कुछ ही पल में वह बेहोश हो गई।
होश में आते ही मां के होश उड़ गए,
सारी पंखुड़ियों पर जैसे ओले पड़ गए।।
मां ने सारा मंज़र पल में समझ लिया,
पर किसी ने भी उसका साथ ना दिया।
अब तो नई कली खिल कर फूल हो गई,
कोई तो बताए ? किसकी भूल हो गई।।
भूल उस मां की जिसने कली को खिलने दिया,
या उस समाज की जिसने फूल को कुचल दिया।