कुछ प्रेम मिलने के लिए नहीं होते,
वे नहीं होते साथ चलने के लिए।
वे तो वनवास काटते हैं,
अनकहे और अनसुने रहने के लिए।
वे एक-दूसरे के पूरक होते हुए भी,
अधूरे रहने के लिए ही बने होते हैं।
वे मात्र इसी बात से संतोष कर पाते हैं,
कि वे किसी के मन में राज करते हैं।
वह प्रेम किसी ख़ास के मस्तिष्क में,
उनका स्मरण बनकर रहता है।
कोई उनके लिए अनायास मुस्कुराता है,
या आँखें नम कर लेता है।
कुछ प्रेम उत्सव नहीं मना पाते,
पर वे उपवास रखते हैं,
और वही छूटा हुआ प्रेम उन्हें जीवित रखता है।
अगर मैं तुम्हारी अपेक्षाएँ पूर्ण न कर सकूँ,
तो निःसंकोच मुझसे विदा लेना।