मैं बिसराया जा चुका गाँधी हूँ

 

 

क्लिष्ट कचरावृती को ढोता;

मंदाकिनी मंथन का वर्तमान विषरूप हूँ...

काई जमी पहचान से ठगा सा खड़ा

सहिष्णुता सप्तशति का जनक;

संदुक पङी चमक खो रही चांदी हूँ 

 

मैं बिसराया जा चुका गाँधी हूँ...

 

अनाथालय में वात्सल्य खोजता;

बहरे नगरों का मृतप्राय माण्डव गायन हूँ...

शांति संदर्भ का बिगङा सांख्ययोग;

संविधान का अनसुना कर दिया गया वाक्यांश

चुनावी वादों के लिए पाली गयी बांदी हूँ 

मैं बिसराया जा चुका गाँधी हूँ...

 

रजोनिवृत्त तलवार संग युद्धोन्मत्त;

भूला दिया गया नरपुंगव रणविशारद हूँ... 

देववधु से नगरवधु के सफर का साक्षी;

वेश्यालयों में रतिक्रिया की अनचाही रजामंदी को

 

प्रेम का नाम दे दी गयी मनोभ्रांति हूँ 

मैं बिसराया जा चुका गाँधी हूँ...

 

मंदिरों मजारों के नाम पर बनता मजाक;

आधी हरीआधी केसरिया रंग दी गई तस्वीर हूँ...

 

पथभ्रष्टों की तिजोरियों में जकङा

 

दबे कूचले आम जनमानस का आर्तनाद

 

अब केवल राजनीतिक उपयोगी क्रांति हूँ 

 

मैं बिसराया जा चुका गाँधी हूँ...

 

सौ बार बिसराओ पर फिर फिर जागूंगा

चाहे जुबां काट लोदिलों से गा दूंगा

वक्त प्रवाह से पार उठ चुकाहूं विचार मैं...

रह रह कर उठती प्रसव पीङा सम

"हिंदुस्तान" के दिलों में पलती आंधी हूँ 

तुम लाख बिसराओ... 

मैं पुनर्जन्म को अग्रसर गाँधी हूँ...


तारीख: 22.07.2019                                    उत्तम दिनोदिया









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