पेड़ों की चीख और सोशल मीडिया का शोर

पेड़ों के पत्ते
सूंघ सकते हैं अब
हवा में घुली मशीनों की साँसें,
उनकी जड़ें काँप रही हैं—
पास आती चट्टानों को चीरती
कुचली हुई ज़मीन की कंपन से।

आधी रात को
एक बंदर अपने बच्चे को
नींद से खींच रहा है,
उसकी आँखों में डर है,
शायद उसे खबर है—
कल तक जिस डाल पर
उसकी दुनिया झूलती थी,
वो अब नहीं बचेगी।

मोर,
अपनी गर्दन तानकर,
फाड़ रहे हैं गला—
"कह दो किसी से!
रोक दो किसी को!"
पर उनकी चीख
कैमरे में कैद हो गई है,
किसी ने वीडियो डाला,
कुछ ने लाइक किया,
कुछ ने लिखा, "So sad",
फिर स्क्रॉल कर आगे बढ़ गए।

NGO की नींद खुली,
कोई स्क्रीनशॉट वायरल हुआ,
किसी ने आँकड़े भेजे,
कोई कोर्ट पहुंचा—
एक याचिका दाख़िल हुई,
जंगल बचाने की।

और इधर,
पेड़ अब भी काँप रहे हैं,
बंदर अब भी दर-ब-दर है,
मोर अब भी उड़ रहा है
किसी अनजाने नीले आकाश की ओर।

शोर है...
बहुत शोर है...
पर उस पेड़ की जगह अब
एक निर्माणाधीन इमारत खड़ी है—
सीमेंट की चुप्पी के साथ।

शायद अगली बार,
जब तुम एक पोस्ट करोगे
"Save Nature" के हैशटैग के साथ,
तो पेड़ की कोई सूखी टहनी
तुम्हारी खिड़की से टकरा कर
तुमसे पूछे—
"कब बचाओगे हमें…
वास्तव में?"


तारीख: 08.04.2025                                    मुसाफ़िर




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