रास्ता

चल पड़ा हूं उस रास्ते पर
जो कभी वापस नहीं आता
खींचता है अपनी तरफ
और आगे और आगे,
बस अब और चला नहीं जाता
प्रकृति की अप्रतिम सुंदरता
साथ साथ चलती है,
मनमोहक वातावरण है
सामने सड़क दिखती नहीं है
शायद बादलों का गुबार है
सफेद चादर ओढ़ी हुई है
रास्ते का अंत लगता है
सामने देवलोक है
बस एक कदम और
पीछे देखता हूं तो
वह रास्ता लुप्त हो गया
केवल धुयें का गुबार है
मेरी यात्रा यहीं समाप्त होती लगती है


तारीख: 04.12.2024                                    प्रतीक बिसारिया




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