(जैसे मेरे मोबाइल में हुई कुछ प्राब्लम पूछने पर चुटकियों में सुलझाता मेरा बेटा नहीं सोच सकता कि उसकी मां ने अपने कालेज के दिनों में तब प्रसिद्ध कंप्यूटर गेम 'प्रिंस आफ पर्शिया' के सारे लैवल क्लीयर कर प्रिंसैस को हासिल किया था ! और भी बहुत कुछ ऐसा है जो आने वाली पीढ़ियां बीती पीढ़ियों के विषय में शायद कभी सोच नहीं पाएंगीं !)
अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,
क्या सोचा है तुमने कभी,
कि वो भी कभी कालेज में टाईट कुर्ती
और स्लैक्स पहन कर जाया करती थी !
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते कि
तुम्हारी माँ जब अपने घर के आँगन में
छमछम कर चहकती हुई ऊधम मचाती
दौड़ा करती तो घर का कोना-कोना
उस आवाज़ से गुलज़ार हो उठता था !
तुम नहीं जानते कि 'ट्विस्ट' डांस वाली प्रतियोगिता में,
जीते थे उन्होंने अनेकों बार प्रथम पुरुस्कार !
किशोरावस्था में वो जब भी कभी
अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे
छत पर फैली गुनगुनी धूप में सुखाने जाया करती,
तो न जाने कितनी ही पतंगें
आसमान में कटने लगा करती थी !
क्या सोचा है तुमने कभी कि अट्ठारह बरस की मां ने
तुम्हारे बीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई तो मारे लाज से
दुहरी होकर गठरी बन, उन्होंने अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा था!
तुमने तो ये भी नहीं सोचा होगा कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर अस्पताल जाने से पहले
उन्होंने माँग कर बेसन की खट्टी सब्जी खाई थी !
तुम सोच सकते हो क्या कि कभी,
अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर , अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियां
जिस संदूक के अखबार के कागज़ के नीचे रख
एकबार तालाबंद की थी, उस संदूक की चाबी
आजतक उन्होंने नहीं ढूंढी !
और तुम उनके झुर्रीदार कांपते हाथों, क्षीण याद्दाश्त, मद्धम नजर और झुकी कमर को देख,
उनसे कतराकर ,
खुद पर इतराते हो ?
ये बरसों का सफर है !
तुम सोच सकते भी नहीं !