मैं रक्षक हूँ, मैं संहारक, मैं बीजमंत्र कहलाता हूँ।
पालनकर्ता, मैं उद्धारक, नटराज मैं ही बन जाता हूँ।
ऋषियों की सिद्ध तपस्या हूँ, देवों का बल अजेय मैं ही।
मैं प्रेम सभी से करता हूँ, पर प्रेमी नहीं कहाता हूँ।
मैं सबके भीतर रहता हूँ, मेरे पुत्रों को यह ज्ञान नहीं।
वे मुझको भेद बताते हैं, हूँ भाव कोई पाषाण नहीं।
प्रेम, करुण, आह्लाद, मेरे आशीष हैं ये वरदान नहीं।
इंसान इंसान में भेद करे जो, मेरा वह इंसान नहीं।
अग्नि हूँ मैं, मैं हूँ समीर,हर युद्ध का हर एक वीर हूँ मैं।
मैं शंखनाद, मैं शिवशंकर, जो अमृत है वह नीर हूँ मैं।
मैं सूरदास, मैं ही मीरा, राँझा की प्रियतम हीर हूँ मैं।
हर मानव की तासीर हूँ मैं, हर मानव की तकदीर हूँ मैं।