तेरा चेहरा नज़र नहीं आता

कैसे करें तारीफ  
     समझ नहीं आता 
          शब्दों की महफिल में 
              आपकी तारीफ लायक 
                    कोई शब्द नजर नहीं आता 

खिले हैं फूल चारो दिशाओं
    यूं तो जर्रे जर्रे में रंगत नजर आती है 
          कैसे  समझायें इस नादां दिल  को 

जब से इन नजरों ने 
    आपकी 'इक' नजर से प्रेम किया है 
         न कोई रंगत इन नजरों को आपके सिवा 
                कोई ओर बहारे 'ए' फूल नजर नहीं आता 

उठते ही हम सुबह को दुआओ में 
     तुझको नहीं तेरे लिए स्वयं को मांग लेते हैं 
शाम होते ही तेरी यादों की महफिल से
      अपने  आप को  हमसफ़र  रंग  लेते  हैं

सुबह की लाली 
     बेनूर सी लगती है 
        तेरी नूर 'ए' रंगत के आगे

ऐ हमसफर 
      मुझे चाँद से कोई शिकवा नहीं 
परंतु क्या करूं 
        चाँद की चाँदनी भी चुभती है नजरों को 
जब तक उसमें 
        तेरा चेहरा नजर नहीं आता ।
 


तारीख: 06.09.2019                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है