अच्छा लगता हैं 



देख कर अच्छा लगता हैं जब कोई अंधे को रास्ता पार कराता हैं
बस के सफ़र से गुज़रते मंदिर पर झुक कर शीश नवाता हैं
नदियों की महिमा पूजने जब आज भी कोई श्रद्धा की सिक्का उछालता है
जब कोई अपने माँ बाप को भगवान का दर्जा दे जाता है


रसोई में पहली रोटी गाय की, गौ माता मान कर बनाता है
मात्र परम्पराओं की दुहाई न दें जब कोई परम्परा निभाता है
जनगण मन की धुन पर निज देश के सम्मान में खड़ा हो जाता हैं
और अच्छा लगता है कोई जब दोस्ती का अर्थ भाई बन जाता है


जब भाइयों में उम्र, समय और संसाधनों के बाद भी रिश्तों में बदलाव नही आता है
अच्छा लगता है........
आज भी जब निस्वार्थ कोई किसी की मदद को हाथ बढ़ाता है
देख कर अच्छा लगता जब बदलते वक्त में भी इंसा पुरानी तासीर में नज़र आता हैं।
अच्छा लगता है........


किसी की चोट पर दूजे के मुख से स्वभाविक अरे ओह हाय शब्द निकल जाता हैं
किसी के गिरने पर कोई लपक कर थामें, ह्रदय का वो भाव बड़ा अच्छा लुभाता है
अच्छा लगता है क्योंकि........
सच में आज भी अपनेपन और लापता सोच सही, पर मुझे तो यही भाव भाता है
देख कर अच्छा लगता हैं जब कोई अंधे को रास्ता पार कराता हैं।


तारीख: 06.04.2020                                    नीरज सक्सेना









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