आरज़ू है कि तुम मुझे आज़ाद रहने दो

न वो समाज के उसूलों का क़र्ज़ दो
न मजहब के वास्तों का फ़र्ज़ दो

उसकी आड़ में न तुम मुझे यूँ  अगवा करो
न मैं दिखूं तुम्हे हरा न तुम मुझे भगवा करो

उसकी रचना का उसे अभिमान रहने दो
वो भेजता है इंसान  उसे इंसान रहने दो

मुझसे मदमस्त दरिया को तुम निर्बाध बहने दो
आरज़ू है कि  तुम मुझे आज़ाद रहने दो |

---------------------------------------------------------------
किसी से ऊपर निकल जाने की यूँ न होड़ हो
मेरी राहों में यूँ न पैसों की दौड़ हो

मैं हूँ नायब तो ये नक़ाब रहने दो
मेरी बंद आँखों में तुम मेरे ख्वाब रहने दो

हसरत-ए-विसाल कि मुराद रहने दो
या किसी की बेवफाई में बर्बाद रहने दो

  "आरज़ू है कि तुम मुझे आज़ाद रहने दो  "


तारीख: 10.04.2024                                    मृदुल शुक्ला









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है