ऐसे तो हर रोज़ जिया नहीं जाता,
यूं हर सुबहा-शाम सुहानी है।।
सिमटने लगी हैं देहरियां रिश्तों की,
ये बात भी अब बड़ी पुरानी है।
खो जाते हैं चारदीवारी में भी लोग,
फिर इसमें क्या हैरानी है?
ऐसे तो हर रोज़ जिया नहीं जाता,
यूं हर सुबहा-शाम सुहानी है।।
जुबानी हवाईयों या गुरुर का कोई क्या ही करे यारों,
साथ कौन कितना चला,, बात ये निराली है।
जिओ ज़िन्दगी मगर अपने अंदाज़ में,
सदायें यही रूहानी है।।
ऐसे तो हर रोज़ जिया नहीं जाता,
यूं हर सुबहा-शाम सुहानी है।।