आज दिल चीख चीख कर रो रहा है
सिसकियां तेरी
कानों मे सुनाई दे रही हैं मेरी
आंखों मे खून के आंसू हैं
कतरा कतराकर मेरे ही शरीर को टुकड़ों टुकड़ों में
क्यूं बलि पर तुझे चढ़ना पड़ता है बार बार
घर के उस चिराग के लिए जो
अस्तित्व में है ही नही अभी
और वो जो सांस ले रही है
धीरे-धीरे एक कोमल शरीर का कर रही है रूप धारण
दौड़ रहा है मेरे शरीर का रक्त धमनियों मे उसकी
वो पानी नही है
कब तक भ्रूण हत्या की आग
बेटियों के अस्तित्व को जलाती रहेंगीं