एक कप कॉफी

थोड़ी सी मीठी
थोड़ी सी कड़वी
बिन चखे ही
स्वाद दे गई
तुम्हारी एक कप कॉफी
जो उधार रह गई
कहा था तुमने
साथ बैठ
एक दिन पिएंगे
इसकी हर एक चुस्की में
अपने गम को निगलेंगे
इसी इंतजार में
सुबह से शाम
होती चली गई
न जाने कितने लम्हों को
जिंदगी के माले में
पिरोती चली गई
एक कप कॉफी
जो उधार रह गई
वादा तुम्हारा
कॉफी पिलाने का
अधूरा रह गया
और सिलसिला जिंदगी का
यूं ही चलता चला गया
एक कप कॉफी
जो उधार रह गई।


तारीख: 11.03.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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