गांव की लड़की बनाम शहरी लड़की

गांव की लड़की
इतर होती हैं
शहरी लड़कियों से

गांव की लड़की
थोड़ी बेवकूफ और नासमझ होती हैं
इन्हें कोई बहला नहीं सकता
शहर की लड़की
होशियार और टैलेंटेड होती हैं
इन्हे कोई भी समझा सकता है
और ये किसी को भी समझ सकती हैं

गांव की लड़की
स्कूल, ट्युशन से लौटती हैं तो
गाय गोबर से लेकर
चुल्हा चौका तक से
फिर से ट्युशन लेती हैं और
उपस्थिति दर्ज कराती हैं

शहर की लड़की
ट्यूशन से नही लौटती
लौटती है 
पिज्जा बर्गर की थैली के साथ
एक नये फिल्म के टिकट के साथ
अपनी नयी सहेलियों के साथ
जो बात बात पर
अनायास ही ठिठियाती है,

गांव की लड़की
ठिठियाती नही
खिसियाती हैं बेहुदा मजाक पर
गांव की लड़की की तबियत खराब हो जाती है 
महीने में एक बार
शहर में एेसा नहीं होता
वो चिल्लाती हैं
मम्मी पैड कहां रख दी

गांव की लड़की को
भगवान बचाए रखते हैं 
ठेस लगने पर भी
हे ! भगवान ही
निकलता है मुख से

शहर की लड़की
स्ववाबलंबी होती हैं
अपने पैरों पर खड़ी होती हैं
इसलिए बात बे बात
माय फुट, माय फुट
कहती हैं,,

एक बात कह दूं
भ्रम न पालें
गांव और शहर की लड़की के बारे में
वास्तव में
बहुत आगे होती हैं 
शहर की लड़की
गांव की लड़की से
बहुत आगे,,,,, 
 


तारीख: 22.06.2017                                    पंकज कुमार साह









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