जो कभी था मेरा

जो कभी था मेरा वो बिका मिल गया
ज़िंदगी का अज़ब ये सिला मिल गया

वक़्त  रहते  कभी  जो  न  मेरा हुआ
दर पे वो भी किसी के खड़ा मिल गया

नज़रे  तेरी  मुझे  सब  बयाँ  कर रही
नाम का तेरे इक क़ाफ़िया मिल गया

बंद हाथों में उसके था क्या क्या यहाँ
सोचते - सोचते  कुछ नया मिल गया

हम चले है सफर में अकेले तो क्या
ढूँढते - ढूँढते  यूँ   ख़ुदा  मिल  गया


तारीख: 11.03.2024                                    आकिब जावेद









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है


नीचे पढ़िए इस केटेगरी की और रचनायें