कभी-कभी मन

कभी-कभी मन
उदास हो जाता है
उदासी के इस आलम में
कलम का साथ
मिल जाता है
कहने सुनने को फिर
बातें हजार
शब्दों में जुड़ जाता है
जैसे कोई नया तार
भाव उलट-पुलट
पन्ने पर आ जाते
सोये हुए कुछ ख्वाब जगा जाते
हमारी और उसकी दोस्ती
फिर चल पड़ती
शब्दों को अर्थों की
स्वतंत्रता से भर देती
मन प्रसन्न हो उठता
कुछ ही देर में
जैसे किरण फूट पड़ी हो
कोई भोर में।
सुबह की लालिमा
आशा जगाती
एक नयी प्रेरणा बन
मन में मुस्कुराती।


तारीख: 20.02.2024                                    वंदना अग्रवाल निराली









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