जब सोता है जहान ये सारा
तब कही कोई जगता है
होता है कुछ कहने को आतुर
पर लब गुमसुम सा रहता है
शब्द उमड़ते हैं मन में
सार नहीं कोई बनता है
सुनते हैं बस सादे पन्ने
कोई नहीं जब सुनता है
दर्द उतरने लगता है इनपर
एक कारवां चल पड़ता है
भरने लगता है गला
मोती सा बह चलता है
देता है फिर वो एक नाम इन्हें
जिसे हर कोई कविता कहता है।