मैं राही हूँ

ज़माने भर का तो ग़म आज मेरे पास है फ़िर भी ,
ऐसा लगता है क्यों मुझको कि मैं बिल्कुल अकेला हूँ।

न तो हमदर्द है कोई नही साथी कोई मेरा,
रेत के खेत मे मै ही सिर्फ पत्थर का ढ़ेला हूँ। 

कोई पढ़ कर मुझे देखे समझ सकता नही जल्दी,
पहले तीखा ही लगता हूँ मै वो कड़वा करेला हूँ।

काफिला लेके जो चलू तो मंजिल डर ही जयेगी,
इसी खतिर तो मै हर दम ही चलता अकेला हूँ। 

तमाशा लग रही दुनियाँ गौर से देखो गर इसको,
नही ज्यादा बड़ा किरदार मै पल भर का मेला हूँ। 

ज़माने भर का तो ग़म आज मेरे पास है फ़िर भी,
ऐसा लगता है क्यों मुझको कि मैं बिल्कुल अकेला हूँ। 


तारीख: 15.10.2017                                    उमेश कुशवाहा




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