वो इतवार जैसा चला आता है,
सर खुद ही कांधे पे रख लेता है,
हैरत है कि इस दिल का धड़कना
उसे बहुत भाता है ।
मुझसे रूठता नहीं है मगर
चाहता है कि उसकी हर बात पर रूठूँ,
अजीब सिरफिरा है हर बार मुझे
मनाना चाहता है।
तोहफे देना मेरा अंदाज
हुआ करता था इश्क़ जताने का,
वो कुछ पागल है जो खुद को ही
मुझे तोहफे में देना चाहता है।
कोई उतरे, बताए ये उसे
वो पत्थर पर उगना चाहता है।