पत्थर पर उगना


वो इतवार जैसा चला आता है,
सर खुद ही कांधे पे रख लेता है,
हैरत है कि इस दिल का धड़कना 
उसे बहुत भाता है ।

मुझसे रूठता नहीं है मगर
चाहता है कि उसकी हर बात पर रूठूँ,
अजीब सिरफिरा है हर बार मुझे
मनाना चाहता है।

तोहफे देना मेरा अंदाज 
हुआ करता था इश्क़ जताने का,
वो कुछ पागल है जो खुद को ही 
मुझे तोहफे में देना चाहता है।

कोई उतरे, बताए ये उसे 
वो पत्थर पर उगना चाहता है।

 


तारीख: 01.03.2024                                    भावना कुकरेती









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है