साया

साया है 
क्या वजूद इसका,
क्या कहानी है,
इसके होने का अस्बाब क्या,
मिला इसे ऐसा खिताब क्या,

आलिमों फाज़िलों को भी,
तस्सवुर नहीं इस राज़ का

तन का यह असीर हो गया,
मन का यह नसीर हो गया,

तुम्हारी गलतियों को माफ़कर,
तुम्हारी नादानियों को जानकर,
तुम्हारी हर शर्त को मान कर,
जो साथ तुम्हारे आया है,
कहते इसको साया है,

तुम भीगे तो यह भीगा,
तुम दौड़े तो यह दौड़ा,
तुम लगे जलने,
तो यह भी हो गया भस्म,

तुम ही से यह होता शुरू,
तुम ही पे होता ख़त्म,

जो विघ्नो में साथ छोड़ दे,
यह वो यार नहीं,

यह तो दुआ है,
किसी अपने की,

यह तो कल्पना है,
किसी सपने की,

यह तो याद है,
किसी ख़ास की,
यह लिए बेचैनी है,
किसी प्यास की,

साथी है जैसे,

मलाल है किसी कायर का,
कलम दवात है किसी शायर का,
सुर है सितार का,
दर्द है प्यार का,
मायूसी किसी हार पे,
आंसू किसी रुखसार पे.


साया चलता बटोरे,
हर उज्जवल याद को,

रहता साथ सिर्फ,
उजले पल में,
अँधेरे में जाने की,
इसको आदत नहीं,

यह तो जीया सिर्फ तुम्हारे लिए,
फिर भी तुम्हे लगता,कि 
तुम्हे मिलती चाहत नहीं, 

लेकर कई राज़ तुम्हारे,
दफ़न होता साथ तुम्हारे,

इसको रहता याद है,
तुम्हे किस चीज़ का गम,
किस चीज़ का मलाल है,

क्या तुमने खोया,
क्या तुमने पाया,

मेरा साया भी रखता इल्म,
की मैंने कितने पल किये हैं ज़ाया 
कहते है इसको साया,


तारीख: 14.06.2017                                    सूरज विजय सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है