सोचकर निकले थे,
दुनिया बदल देंगें
लहरें आएँगी तो क्या,
हम समंदर में नहाना छोड़ देंगें?
लेकिन
यह दुनिया , आज भी वही है
बदल दिया है उसने , मुझे
वो थी एक मुस्कान ,
पर अब याद नहीं
अब तो एक से लगते हैं
सभी चेहरे ,
मिटटी के पुतले से
पर धीरे - धीरे , जैसे - तैसे
सीख लिया है मैंने भी
वो नकली चेहरे
वो चौड़ी - सी मुस्कान
और फिर
तुमने भी तो साथ छोड़ा ना ,
तुम अगर गए न होते
तो शायद ,
हम बदले न होते
हाँ इतना जरूर मालूम है
निकला तो मैं ही था ,
मगर इस बात से अनजान
कि जिसे मैं बदलने चला था ,
वो तो वहीँ ,
पीछे छूट रहा था