तरकश

वैचारिक विरोध मर्यादित होता है 

 व्यक्तिगत दुश्मनी की कोई जगह नहीं है

 फ़ेंक दो खंजर अपने हाथों से

 इन गर्दनों में अब सर नहीं है

 विरोध का स्वर न उठेगा अब कोई

 सब मुर्दे हैं, इनकी बातों में कोई असर नहीं है 

 बात अब सुनी जाए या ना सुनी जाए

 हो जाए जो भी

 हमें कोई डर नहीं है

 चलाएंगे क्या वो हम पर

 जिनके तरकशों में कोई तीर नहीं है

 


तारीख: 06.11.2024                                    प्रतीक बिसारिया




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