यायावर

निरउद्देश्य घूमता रहा जिंदगी भर
यायावर हूं,भटकना मुझे आता है
यायावरी के हर कठिन सफर में
अकेले होने का मर्म समझ आता है
सहारा टूटा, कुछ नहीं बचा था
अपने आप में सीमटना मुझे आता है
लोगों की बेरुखी अब परेशां नहीं करती
मुस्कुरा के टालना मुझे आता है
लड़खड़ाता चला हूं जिंदगी भर
गिर के संभलना मुझे आता है
चल दिए थे छोड़ के बीच मझधार में
शुक्र है, साथ निभाना मुझे आता है


तारीख: 19.01.2025                                    प्रतीक बिसारिया




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है