है जीवन इकतान, हूँ महफिलों में आज गुमसुम
ऐ क़िस्साख़वाँ दे कुछ और हवा बुझती आग में
अल्फाज़ों को रख, किस्सागोई की खुश्बू से परे
भंवरे का दिल नहीं लगता अब महकते पराग में
जिंदगी के विरान बीहङ में दुनियावी बीमारपुर्सी
बूचड़खाने सी दुर्गंध आती है झूठे सब्जोबाग में
ले चलना मोहब्बत के मंजरों में ऐ बिछौने आज
जागता हूं तो ये छूट जाते हैं कहीं भागमभाग में
आखों की मोतीयाना चमक, वो खुश्बू-ए-मेंहदी
लेती है अंगङाईयाँ, उसकी नींदें अब मेरी याद में
मौनालाप सा स्वप्निल सुलेख, कस्तूरी सी महक
क्या क्या नया पा जाता हूं उसके नज्मों नाज में
सूखे गुलाब के पन्नों को रखूं चाहे लाख छुपाकर
दस्तखत कर ही जाती है वो, उनींदी सी जाग में