उसकी फ़ितरत है सब भूल जाने की,
मेरी आदत है हर याद सजाने की।
वो तोड़ती रही हर ख़्वाब बेपरवाह,
मेरी ज़िद थी हर टुकड़ा उठाने की।
वो गुज़री राहों से आगे निकल गई,
मेरी आदत थी वहीं घर बसाने की।
उसे पसंद थीं उड़ानें ऊँची-ऊँची,
मुझे हर शाख़ पे खुशियाँ सजाने की।
शिकायत क्या करूँ उसकी इस अदा से अब,
शायद क़ीमत है ये दिल लगाने की।