कुछ न कहो

कुछ न कहो यदि वह अपना है।
भय से ही थर थर कँपना है।।

ईश्वर जाने कहाँ छुपा है,
अब केवल माला जपना है।

साहित्य यहाँ पर गौण हुआ,
अखबारों में बस छपना है।

कोरोना का क्या है मतलब,
पैसों पर पैसे खपना है।

जिस डाली पर फल फूल लदे,
उस डाली को तो लफना है।


तारीख: 14.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है