वो ज़माना कुछ और था

a kavita on old times , nostalgia by Musafir

गुजरे समय की बातें क्या, वो ज़माना कुछ और था,
हर लम्हा जब यादों में बसता, वो फसाना कुछ और था।

पल भर को थे जो साथ यहाँ, अब हैं खो गए कहाँ,
यादें रह गईं हैं बस, समय का तकाज़ा कुछ और था।

बीते दिनों की खुशबू में अब भी हैं ताज़ा वो बातें,
समय की रेत पर लिखा, हर एक नज़राना कुछ और था।

रिश्ते नज़र के सामने से गुज़र गए जैसे ख्वाब,
बदलते देखा है समय को, हर ज़माना कुछ और था।

क्या खोया, क्या पाया है, इस राह में सोचा करें,
वक़्त की धूल में जो छुपा, वो अफसाना कुछ और था।

हर याद अब भी आँखों में आँसू बनके बहती है,
गुज़रे समय की राह में, हर निशाना कुछ और था।


तारीख: 12.04.2024                                    मुसाफ़िर









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