( सुन्दरी सवैया छन्द )
(कविता)
अगर तुम ना होते
धरती यह भारत की जनती, जननायक भीम बली, धरती है।
जय भीम भरा हर राग यहाँ, समता सरताज सभी सजती है।
इस देश धरा पर काम किया, दुनिया यह भीम सदा भजती है।
वह मानवता मन माय बसी, जिससे दुनिया सबकी सजती है।। (01)
जननी जनती जब भीम बहादुर, बात बुरी हिम-सी गलती है।
जलते जन जो, जल जाय भले, जय भीम सदा अपनी चलती है।
नर जीवनदान दिया तुमने, हमको जग रत्न कमी खलती है।
जनता उर याद बसी सबके, हर हाल हिये हँसती पलती है।। (02)
कुछ लोग घृणा करते निसि-वासर, मानवता ममता मरनी है।
तुम फैशन मानत भीम भले, वह भारत का करतार धनी है।
अपवर्ग मुबारक हो तुम को, हमको हर बात यहाँ करनी है।
हमको सब लोगन में समता, ममता मन मानवता भरनी है।। (03)
तुम चाहत मुक्ति सभी भगवान, भजो अब केवल कल्पित कोरा।
हम मानत भीम विधान सदा, समता करुणा भरता मन मोरा।
तुम स्वर्ग निवास करो छलनामय, जीवनकाल रहो कल छोरा।
हम भीम विचारक हैं धरनी, सब स्वर्ग बनावत मानव मोरा।। (04)
गणराज्य बना जब भारत था, विपदा विधि की बड़ आन पड़ी थी।
जब संरचना विधि की रचने, पर संसद में तब बात अडी़ थी।
अति दुष्कर था यह कारज, कौन करे कुछ, ना तरकीब बड़ी थी?
तब भीम भरा अति जोश सभा, सब लोग कहे यह बात बड़ी थी।। (05)
कल काम कड़ा करने विधि का, करतार नहीं नभ से उतरे थे।
तब भीम बली दिन-रैन जगे, जब जाकर न्याय विधान सरे थे।
जब ग्यारह मास अठारह वासर, दो कुछ साल विचार भरे थे।
तब भारत की विधि वाह! बनी, अति त्याग समर्पण भाव भरे थे।। (06)
अपमान करो उस भीम बहादुर, क्यों तुम द्वेष धरो मनमाना?
सबको अधिकार समान दिये व समाज सुधारक थे जन जाना।
तुम लाज न आवत लांछन लावत, भीम बली गुण धारत नाना।
जिनको जग जानत विश्व विचारक, देश-विदेश बताय सुजाना।। (07)
वह दीपक से दिन-रात जले, जन को अधिकार दिलाकर माने।
वह वीर विलायत जाय पढा़, पर मानवता ममता मन माने।
सबको समता अरु न्याय दिया, मन माय न भेद किया सब जाने।
वह भारत तारणहार बना, जन-जीवन का उपकारक जाने।। (08)
पग धूल बराबर भी तुम नाय, करो बदनाम, नहीं कुछ जानो।
विष पीकर भीम बली बनना, बड़ दुष्कर काम किया तुम जानो।
विष छूत-अछूत अकारण ही, भव भेद भरा विष के सम मानो।
अपमान हुताशन जाय जले, घनघोर घृणा तप, कुन्दन मानो।। (09)
नर श्रेष्ठ समाज सुधारक भीम, भरे गुण ज्ञान-विज्ञान प्रकाशा।
अब आज अज्ञान समाप्त करो, खुद ढोंग तजो तब होय विकासा।
जग शिक्षित हो तब भेद मिटे, अतिचार अमावस होय विनाशा।
पढ़ ज्ञान-विज्ञान विधान सदा, तज भूत भयानक भीम प्रकाशा।। (10)
यह फैशन नाय जुनून जहान, जगाकर जावत भीम बली है।
अति अन्धन को कुछ दीखत नाय, नई बदलाव बयार चली है।
अहसास अली अपनापन लावत, भीम विचार विहार गली है।
भल भीम विधान समान सभी, खलनायक के मन आग जली है।। (11)
जिसने जन को अधिकार दिये, समता सबको समभाव दई है।
अब आप अधीन हुए हम लोग, अधीन नहीं नर, नाज नई है।
सब शोषण मुक्त मनुष्य करे, करतार बली यह सोच दई है।
तुम तो तब भी जलते दिन रात, तुम्हें अधिकार व शान दई है।। (12)
सब सीख रहे पढ़ना-लिखना, विधि भीम बनावत बात सही है।
अब धर्म व संस्कृति का अधिकार, अहा! अरमान अशेष नहीं है।
भल भीम विधान विज्ञान भरा, जनरक्षक है, उपचार वही है।
कितने उपकार किये जनता पर, जो जलते खल नीच वही है।। (13)
दुःख दारुण जन्म तमाम सहा, हर हालत में मन चोट लगी है।
पढ़ता पदत्राण समीप सदा, मन में मरणान्तक टीस जगी है।
विष छूत-अछूत पिया उसने, मन में बदलाव बयार जगी है।
अपमान अकारण क्यों करते, कब कालिख सूरज शान लगी है? (14)
जयकार जहान तभी करता, गुणवान गुणी गहरा नर माने।
वह भीम भरा भरपूर लबालब, मानवता समता सब जाने।
वह भारत का अनमोल, अतुल्य, सहायक था, जनरक्षक जाने।
मति मन्द अज्ञान भरे कुछ लोग, जले जननायक फैशन माने।। (15)
जब वाचन था पहला विधि का, शुरुआत विधान वहाँ करनी थी।
जब कामथ ईश्वर नाम सुझाय, सुहाय नहीं बहसें करनी थी।
कुछ मोहनदास सुझाव दिया, कुछ शक्ति सुझाय कृपा करनी थी।
‘हम भारत के जन’ भीम कहा, शुरुआत सही सबको करनी थी।। (16)
टकराव हुआ जब आपस में, सबने मतदान विचार किया है।
कम वोट पड़े पक्ष ईश्वर के, जनता जब जीत चुनाव लिया है।
सम शक्ति सभी जन प्राप्त हुई, वरदान विधान बनाय दिया है।
निरपेक्ष बनाकर भारत भीम, भयानक रोग मिटाय दिया है।। (17)
सब धर्म समान बनाय दिये, अतिचार अनेक मिटाय दिये हैं।
जन-जीवन को वरदान दिया, अरु आग अजीब बुझाय दिये हैं।
जल जाय जहान भयंकर आग, जली सदियों सब जान लिये हैं।
सबको सबसे लड़वाकर के, कुछ छूत-अछूत बनाय दिये हैं।। (18)
विधि भीम बनाकर ढोंग तजे, सबको समता अधिकार दिया है।
जड़ता जन की कर दूर दई, अरु जीवन का अधिकार दिया है।
वह वीर बहादुर भारत का, विष लेत सुधारस दान दिया है।
फिर फैशन क्यों कहते कमजोर, कुभाव भरा व कठोर हिया है।। (19)
जनरक्षक जो जननायक थे, जनता जग जाहिर भीम किया है।
नर रत्न समाज सुधारक थे, बदला जन जालिम से न लिया है।
विधि निर्मित नायक भीम करी, सबको समता सम मान दिया है।
करबद्ध कहे कवि मारुत, मानव को सुख-चैन अपार दिया है।। (20)