अंधेरो में तनहा निकलने का शौक़ है |
इन दिनों मुझे सूरज निगलने का शौक़ है |
किनारे पे सुन ली बहोत समंदर की धमकियां |
लेहरो पे पांव रख के अब मचलने का शौक़ है |
बुझा लिए थे हाथ रख के दिल पे, दिल के जो वो शोले |
हवा दे के उन्हें, उनके साथ में, जलने का शौक़ है |
ऊँची आवाज़ होगी अब बस अज़ान में मेरी |
अदब के साथ सब से मिलने जुलने का शौक़ है |
आसमान भी हुआ है मुन्तज़िर किसी का हमकदम |
ज़मीन पे रहने का शौक़ है ज़मीन पे चलने का शौक़ है |