अंधेरो में तनहा निकलने का शौक़ है

अंधेरो में तनहा निकलने का शौक़ है |

इन दिनों मुझे सूरज निगलने का शौक़ है |

 

किनारे पे सुन ली बहोत समंदर की धमकियां |

लेहरो पे पांव रख के अब मचलने का शौक़ है |

 

बुझा लिए थे हाथ रख के दिल पे, दिल के जो वो शोले |

हवा दे के उन्हें, उनके साथ में, जलने का शौक़ है |

 

ऊँची आवाज़ होगी अब बस अज़ान में मेरी |

अदब के साथ सब से मिलने जुलने का शौक़ है |

 

आसमान भी हुआ है मुन्तज़िर किसी का हमकदम |

ज़मीन पे रहने का शौक़ है ज़मीन पे चलने का शौक़ है |


तारीख: 21.07.2017                                    मुंतज़िर









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