जर्जर सा बदन है, झुलसी काया,
उस गरीब के घर ना पहुंची माया,
उसके स्वेद के संग में रक्त बहा है
तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।
हर सुबह निकलता नव आशा से,
नहीं वह कभी विपदा से घबराया,
वो खड़ा रहा तुफां में कश्ती थामे
तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।
वो नहीं रखता एहसान किसी का,
जो पाया, उसका दो गुना चुकाया,
उस दर को सींचा है अपने लहू से
तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।
उसकी इस जीवटता को देख कर
वो परवरदिगार भी होगा शरमाया,
पहले घर रोशन किए है जहान के
तब जाकर वह दो रोटी घर लाया।