सुनो ना

सुनो न, तुम आज भी बहुत याद आती हो
मेरी नींदों में आके मुझे वैसे ही सताती हो
सुनो न तुम आज.....

                        लगता है जैसे कल की ही तो बात है
            मैं तुमसे मिलने आ रहा था,
वो सावन का महीना था और बारिश की फुहारों के बीच खिड़की की सीट पे बैठा मैं था,
जो दूरी जाने क्यों मुझे बेचैन कर रही थी,
उस दूरी को तुमने अपनी आंखो में भर लिया था वक्त को भी तुमने इतना तेज कर लिया था,
कि वक्त भी तुमसे पूछ बैठा कि आखिर तुम ये कैसे कर पाती हो
सुनो न तुम आज........
       
                       वो जो तुम मुझे स्टैंड से लेने आई थी,
            कांपते पैरों,थिरकते लबों के साथ बेपरवाही में घूमती कलाई थी,
वो आसमानी सूट था वो तुमने गुलाबी लिपस्टिक लगाई थी,
मैं तुमसे पूछने ही वाला था कि बिंदी भूल गई क्या,
फिर अचानक याद आया कि तुम बिंदी कहां लगाती हो,
सुनो न  तुम आज..........

                    वो जो मंजिल तक पहुंच कर तुमने मुझे गले से लगाया था,
वो प्यारा एहसास मैं आजतक न भूल पाया था,
वो जो तुमने मुस्कुराते हुए कहा कि थक गए होगे तुम,
बस में आती प्यारी नींद से उचट गए होगे तुम,
क्यों न मेरी गोद में लेटो मैं तुम्हारा सर दबा दूं,
उठ रही हर दर्द की एक प्यारी दवा दूं,
मैं हैरान था कि अरसे बाद मिलने पर भी बेचैनी को तुम कितने प्यार से छुपाती हो,
सुनो न तुम आज .........

                                   वो जो तुमने निकलते समय मुझे आगोश में भर लिया था,
रोते हुए मेरे सीने पे अपना सिर धर लिया था,
उन आंसुओ की ठंडक मेरे दिल ने भी महसूस कर ली थी,
तुमसे यूं विदा होते वक्त मेरी आंखे भी गीली थीं,
कहा न था पर सारे रास्ते मैं रोता आया था,
आंसुओ को तेरे आंसुओ में संजोता आया था,
ये मैं जब तुम्हें शब्दों में पिरो रहा हूं,
मुझे लगता है शायद मैं अब भी रो रहा हूं,
आखिर क्यों सपनों में इतने पास आकर सुबह अचानक दूर चली जाती हो,
सुनो न तुम आज भी बहुत याद आती हो ।
 

#Adarsh

 


तारीख: 03.08.2025                                    आदर्श




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है