हरपल पीड़ा सहकर भी
विषमता में रहकर भी
बूँद-बूँद स्वयं गलकर भी
देती है ममता की छाँव
एक विशाल वट वृक्ष की भांति
जननी,
सहोदरा,
सुता और अर्द्धागिंनी,
विविध रूपों में बँटकर भी
ढोती है इन रिस्तों की मर्यादा
एक अतुल्य स्तंभ और
सृष्टि की मुस्कान है,
हे नारी तू महान है
हे नारी तू महान है!!
घर-आँगन की कुसुम-कली
जीवन का अनमोल आभूषण
जग प्रवाह की मौन गति
या समाज का हृदय-स्पंदन
हर पल
हर कदम
तू संसार की जरूरत है
तुम्हीं से सृजन संभव
तू सहिष्णुता की मूरत है
समृद्धि की श्वासा तू
जग तेरे बिना वीरान है,
हे नारी तू महान है
हे नारी तू महान है!!
अपना लहू पिलाकर तुमने
अखिल विश्व को विस्तार दिया
किंतु इसके बदले जग ने
सदैव तेरा संहार किया
क्या एक कदम चल पाएगा
यह दुनिया तुझको खो कर
ध्वस्त हो जाएगी सृष्टि
तुमसे पृथक हो कर!
तेरी शीतल छाया में ही
नवयुग का उत्थान है,
तू बोझ नहीं जग के लिए
एक संजीवनी वरदान है!
हे नारी तू महान है
हे नारी तू महान है!!