कल्पना


कल्पना है क्या? मन की दीर्घ उड़ान है।
इच्छाओं के समंदर का, शीतल तूफान है।
स्वप्न के उपवन का, खिला हुआ सा पुष्प है।
भाव सैलाब है, आत्मा की शून्य मुस्कान है।

 

प्रीतम की हल्की हल्की सी, मुस्कान भी है इसमें।
शैतान भी है दिख रहा, भगवान भी है इसमें।
माँ की ममता, आँचल, गोद, भी है इसमें दिख रहा।
पिता का स्वप्न बेटी का, कन्यादान भी है इसमें।
जज़्बातों के स्वप्न बनने की अनुपम दास्तान है।
कल्पना है क्या? मन की दीर्घ उड़ान है।

 

कभी पीड़ा, कभी है डर, कभी रति का आनंद बताता है।
कभी करुणा, कभी है जड़, निष्प्राण हिय में प्यार जगाता है।
बुझे हुए से लम्हों को आनंद विभोर कर देता है।
हर पल प्रतिपल बढ़ता है, निरंतर बढ़ता ही जाता है।
देवों का आशीष है, मानवता पर वरदान है।
कल्पना है क्या? मन की दीर्घ उड़ान है।
 


तारीख: 09.08.2017                                    विवेक सोनी









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