मैंने किताबों से कर ली हैं जबसे दोस्ती ,
मेरे बाहर की दुनिया कुछ छोटी हो गयी हैं।
सुबह-शाम बस किताबों के साथ बैठना ,
दोस्तों की महफ़िल कुछ सूनी हो गयी हैं।
जब भी बात करने का दिल करता हैं ,
कर लेता हूँ इनसे ।
मेरी यह दोस्त,साथी ,हमसफ़र ,
सबकुछ बन गयी हैं ।
सुबह से शाम तक का सफर बस इनके साथ तय करता हूँ ,
जब कभी थक जाता हूँ ; बैठ जाता हूँ आँखें मूँदकर ,
और गुम हो जाता हूँ इनकी दुनिया में ।
सचमुच मैं खो गया हूँ
इनकी दुनिया में ,
और बन गया हूँ आशिक़ इनका ।