कुर्सी पकड़ बैठे ऐसे विरासत में जैसे पायी हो

कुर्सी पकड़ बैठे ऐसे
विरासत में जैसे पायी हो
अंगूठा लगाने की औकात नहीं
मुँह चलाते,जैसे खुद की कमाई हो


बिलखता परिवार नहीं दिखता इनको
भूगोल बदलने की ठानी है
खुद का तो पेट नहीं संभलता
अबला हो तुम,तुम्हारी क्या कहानी है


खोखले वादे तुम्हारे, खोखली औकात
गद्दारी भरी रगों में,दीमक तुम्हारी जात
खाली मलाई खूब,रईसी अब न चलेगी
किया जो साठ सालों में,दाल अब न गलेगी


रात कितनी भी गहरी क्यूं ना हो
एक दिन गुजर उसे भी जाना है
नीलाम किया जो विरासत हमारी
मुकुट समेत अब फिर लाना है


कान खोल अब सुन लो भ्रष्टाचारी
भारत को फिर विश्व गुरु बनाना है।।


तारीख: 18.07.2017                                    रोहित सिंह









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है