क्यों अँखियों में, नींद ना आये

रातो के लम्बे हो गए  साये,
ख्वाबो ने भी पर फैलाये , 
सूनी  हो गयी सारी राहें,
पर अँखियों में, नींद ना आये। 

क्या जाने,  क्या बैठी सोचु ?
किसकी राह हर दिन मैं ताकूँ 
उम्र ने  कितने कहर बरपाये , 
क्यों अँखियों में, नींद ना आये। 

पूरी ना  होती आस ज़रा सी 
मैं  सागर में रह गई प्यासी,
उस  पर ये  सावन  तरसाये ,
क्यों अँखियों में, नींद ना आये। 

कितना दीपक राग  छेड़ा,
पर शब्द ने सुर  रिश्ता तोडा, 
आग लगी , मेरे आप लगाये ,
क्यों अँखियों में, नींद ना आये।
                        


तारीख: 10.06.2017                                    संध्या राठौर









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