रातो के लम्बे हो गए साये,
ख्वाबो ने भी पर फैलाये ,
सूनी हो गयी सारी राहें,
पर अँखियों में, नींद ना आये।
क्या जाने, क्या बैठी सोचु ?
किसकी राह हर दिन मैं ताकूँ
उम्र ने कितने कहर बरपाये ,
क्यों अँखियों में, नींद ना आये।
पूरी ना होती आस ज़रा सी
मैं सागर में रह गई प्यासी,
उस पर ये सावन तरसाये ,
क्यों अँखियों में, नींद ना आये।
कितना दीपक राग छेड़ा,
पर शब्द ने सुर रिश्ता तोडा,
आग लगी , मेरे आप लगाये ,
क्यों अँखियों में, नींद ना आये।