मानवता मर गई है

           ( देव घनाक्षरी छन्द )

 

 

             मानवता मर गई है

 

 

आदत अज़ीब जगन्नाथ जुल्म करने की,

                छुआछूत भेदभाव भय भव भारी भरत।

पूजा पाठ करने को महान मानुष आया,

               पहले पूरे पाँच लाख दान-दक्षिणा करत।

प्रतिमा पत्थर की क्यों मन पे पाथर पड़ा,

                बुजुर्ग बेचारा बैठा पूजा पौड़ी पर करत।

जातिवाद ज़हर जन्म-जन्म से सहते हैं,

          कुलीन कातिलों का कैसे “मारुत” मन मरत?

 

 

                 

 


तारीख: 14.06.2025                                    पवन कुमार "मारुत"




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