याद करो मेरे दोस्त वह दिन
कितने खुश हो गए थे तुम
तुमने तो सोंचा भी नहीं होगा कि
तुम खुद हीं मुझे शहंशाही सौंपोगे और
ग़ुलाम बनोगे तुम
जब मैंने तुम लोगों के बीच फ़ासले घटा दिए
तो कितने खुश हो गए थे तुम
पर मुझे क्या मालूम था कि
फ़ासले घटाते-घटाते अपने आप से फ़ासले
बढ़ा लोगे तुम
मुझसे तुमने उम्मीदें बढ़ाई
मैं जब उनपे खरा हो उतरा
तो कितने खुश हो गए थे तुम
मगर क्या इस दोस्ती को सिर्फ मैं हीं निभाऊँ
मेरी उम्मीदों पर कब खरे उतरोगे तुम ?
जब भी तुमने मुझसे मदद माँगी
और मैंने दोस्ती की खातिर किया
तो कितने खुश हो जाते थे तुम
मगर ऐ दोस्त
मैंने तेरी इतनी मदद कर दी कि
किसी की मदद करने के काबिल नहीं बचे तुम
तुम्हे खुश करते-करते अब
मेरा बदन अकड़ने लगा है
हर वक्त के इस्तेमाल से
सिर-दर्द करने लगा है
हर वक्त मेरा साथ मत ढूँढो
तुम दोस्त हो इसलिए कह रहा हूँ
शायद मैं तेरी साँस बन चुका हूँ
जो हर वक्त तेरे साथ रह रहा हूँ
कुछ तुम करो कुछ मैं करूँ
तभी दोस्ती कायम यह रहेगी
नहीं तो जान ले
कि मैं कृष्ण नहीं जो तेरे
सुदामा बन जाने पर तेरा साथ दूँगा