मैं खफा हूँ उस हवा के झोंके से
जिसने तुमसे पूछे बगैर हीं तुम्हे चूम लिया
तेरे ज़ुल्फ़ ऐसे झूमे की मानो
उन्होंने पूरा जग घूम लिया
उस ठण्ड से काँप उठी वह
आँखें जगमगा उठी उसकी
मैं खफा हूँ उस सूरज से
नज़र न पड़ी उसपर जिसकी
क्या गलती थी उस अस्तीनों वाले कपड़े की
जो तुमने उन्हें अगले दिन से पहनना बंद कर दिया
क्या गर्मी आ गयी थी या तुमने
उन ठंडी हवाओं से डरना बंद कर दिया
मैं दाद देता हूँ तुम्हारे इस तरह बेख़ौफ़ होने पर
मगर एक बार मेरा ख्याल तो कर लिया होता
तुम अगर बीमार पड़ जाती तो
उस ग़म को मैं कहाँ-कहाँ ढोता
खैर छोड़ो तुम्हे तो परवाह हीं नहीं
की मैं तुम्हारी कितनी परवाह करता हूँ
तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए
मैं पूरी दुनिया से लड़ता हूँ
कितना नादान हूँ मैं जो तुम्हारी इतनी फ़िक्र करता हूँ
ग़लती हो गयी मुझसे इसका मैं अब ज़िक्र करता हूँ
अरे इतनी मशक्कत अगर मैंने किसी बेचारे के लिए की होती तो वह कहाँ-से-कहाँ पहुँच गया होता
मेरे जाने के बाद कम-से-कम वह मेरी याद में तो रोता
अभी भी वक्त गुज़रा नहीं है मैं यह अब समझ गया हूँ
अपना यह गुरूर अब किसी और पर आज़माना क्यूंकि
मैं अब बदल गया हूँ...