बोझ की तरह ढोया जा रहा हूं फिर भी जिए जा रहा हू अक्षमता की कसक स्वयं का कोई दोष नहीं प्रकृति का खेल है हमें कोई रोष नहीं
साहित्य मंजरी - sahityamanjari.com