क्या भूलूँ क्या याद रखूँ में

जब तपती सघन दुपहरी में,
नंगे पग धरती पर जलते थे,
सर पर जीवन का बोझ लिए,
निःसहाय बने वो चलते थे,
उनकी उस क्षण की पीड़ा पर,
करुण रहूँ या अवसाद करूं में,
क्या भूलूँ क्या याद रखूँ में।

जब मां ने अपने बालक को,
पेटी पे लिटा के खींचा हो,
तुमसे सब आशा पाली थी,
पर तुमने आंखों को मींचा हो,
हे राज तन्त्र हे भ्रष्ट तंत्र,
रूठूँ तुमसे कि विवाद करूं में,
क्या भूलूँ क्या याद रखूँ में।

आत्मनिर्भर भारत हो या,
फिर हो कोई मन की बात,
हर जगह बस है चर्चा तेरा,
तुमको बंटती सारी सौगात,
दरिद्र रहे पर तुम युहीं हमेशा,
रहूँ क्रोधित या उल्हास करूं में,
क्या भूलूँ क्या याद रखूँ में।
 


तारीख: 27.02.2024                                    दिनेश पालिवाल









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