उन् तितलियों की भांति ,
कभी पत्तों की सीढियां ,
तो कभी फूलों पर
उछलना मचलना
मैं चाहता हूँ .
वो तारों की बातें
वो गुड़ियों का खेल
और उस पतंग के साथ ,
आसमान को छूने की तमन्ना
अपने बचपन को फिर जीना
मैं चाहता हूँ.
उस पहाड़ के ऊपर
हाँ उस सबसे ऊँची चोटी पर
अपनी बाहें फैलाये
कुछ जोर - जोर से चिल्लाना
मैं चाहता हूँ.
तुम्हारा विश्वास
जो तुम्हें मुझमें है माँ ,
आशाएं करती हो जो मुझसे ,
उन् विश्वासों की कल्पनाओं
को हकीकत में उतारना
मैं चाहता हूँ .
जो हैं हमसे कुछ अलग
थोड़े लाचार ,
थोड़े से ना - खुशकिस्मत
पर ख्वाबों से लबालब
उनके सपनो को पूरा कर जाना
मैं चाहता हूँ .
थाम हाथ लहरें कहा ले चलेंगी
खड़ा किनारे सोच रहा हूँ
डरता हूँ ,
पर कूदने की जिद्द भी है .
उस गहराई में समा कर ,
एक दिन मोतियाँ चुरा लाना
मैं चाहता हूँ .