मैं चाहता हूँ

उन्  तितलियों  की भांति ,
कभी  पत्तों  की सीढियां ,
तो  कभी  फूलों  पर 
उछलना  मचलना
मैं  चाहता  हूँ .

वो  तारों  की  बातें 
वो  गुड़ियों  का  खेल 
और  उस  पतंग  के  साथ ,
आसमान  को  छूने  की  तमन्ना 
अपने  बचपन  को  फिर  जीना  
मैं  चाहता  हूँ.

उस  पहाड़  के  ऊपर 
हाँ  उस  सबसे  ऊँची  चोटी  पर 
अपनी  बाहें  फैलाये 
कुछ  जोर - जोर  से  चिल्लाना  
मैं  चाहता  हूँ. 

तुम्हारा  विश्वास  
जो  तुम्हें  मुझमें  है  माँ ,
आशाएं  करती  हो  जो  मुझसे ,
उन्  विश्वासों  की  कल्पनाओं 
को  हकीकत  में  उतारना  
मैं  चाहता  हूँ .

जो  हैं  हमसे  कुछ  अलग 
थोड़े  लाचार , 
थोड़े  से  ना - खुशकिस्मत 
पर  ख्वाबों  से  लबालब 
उनके  सपनो  को  पूरा  कर  जाना 
मैं  चाहता  हूँ .

थाम  हाथ  लहरें  कहा  ले  चलेंगी 
खड़ा  किनारे  सोच  रहा  हूँ 
डरता  हूँ , 
पर  कूदने  की  जिद्द  भी  है .
उस  गहराई  में  समा  कर ,
एक  दिन  मोतियाँ  चुरा  लाना 
मैं  चाहता  हूँ .


तारीख: 02.07.2017                                    सुबोध कुमार सिंह









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