रोटी

हँसाती कभी तो रुलाती ये रोटी।
जलन भूख की है मिटाती ये रोटी।

न हिन्दू न मुस्लिम न कोई इसाई,
सभी को बराबर बनाती ये रोटी।

दिखे भीख को हाथ फैलाए बच्चे,
गरीबी में कितना सताती ये रोटी।

थके पाँव लेकर कभी घर जो लौटा,
सभी दर्द दिल के भुलाती ये रोटी।

कड़ी धूप में जब कमाई तो जाना,
नसीबों से घर में है आती ये रोटी।

बड़ी तब अमीरी से लगती गरीबी,
मुझे जब मेरी माँ खिलाती ये रोटी।
 


तारीख: 15.04.2024                                    विमल शर्मा विमल









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