सादगी

चकाचौंध की दुनिया से दूर
अख्यात गाँव में
सादगी से जीता हूँ।
खुद के प्रति इमानदार
रहने का प्रयास करता हूँ
बाहर से और भीतर से भी
काफी अकेला हूँ।
लोग बड़े बड़े सपनों को लेकर
बेचैनी से दौड़ रहे हैं
सड़क से किनारा कर
देखता रहता हूँ
पीपल की पेड़ तले बैठकर
सिसकियाँ लेता हूँ
चार रोटी की जुगाड़ को लेकर
दौड़धूप तब भी जारी था
और अब भी जारी है
पीढियाँ बदल गई
लेकिन संघर्ष फिर वही है
बड़े बड़े महलों की
सिसकियाँ सुनता हूँ
अत्याधुनिक सवारी साधनों में
गुडनेवालों का दुख देखकर
सहम जाता हूँ।
आदमी को आदमीयत का गूर
कैसे सिखाया जाए
सोचता हूँ
सरलता से जीता हूँ इस तरह
जैसे किसी के
किराए की मकान में हूँ।
 


तारीख: 05.02.2024                                    वैद्यनाथ उपाध्याय









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