स्त्री मात्र शून्य है

जिस्मों की हिस्सेदारी में
मेरा और उसका
ये अनुपात था कि
उसको
मेरे बाल,होंठ,गाल,स्तन,पेट,नितम्ब,जाँघ,योनि और टाँगों से
खेलने और उनको खोलने की पूरी आज़ादी थी
और मेरे हिस्से में थी
उसके किए प्यार के उपरान्त की
थकान, पीड़ा, कष्ट,दर्द और निशब्द लाचारी

क्योंकि
अनुपात के गणित को
मर्द और औरत का फर्क
पता नहीं होता
और यह गणित हमेशा से ही
पुरुष प्रधान समाज द्वारा तय किया जाता रहा है
जिसमें स्त्री मात्र शून्य है
या है कुछ भी नहीं
जिसमें कुछ भी गुना या भाग कर लो
उसकी पीड़ा में
या उसके स्त्री होने में
कोई फर्क नहीं पड़ता है


तारीख: 12.10.2019                                                        सलिल सरोज






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